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हिन्दी में प्रथम लेख

कई बार मुझे इस बात का एहसास होता है कि हिन्दी हमारे देश कि प्रमुख भाषा होते हुए भी कंप्यूटर पर कदाचित् ही उपयोग में लायी जाती है। शायद इसकी एक वजह हिन्दी की देवनागरी लिपि हो सकती है, जो कि मूल रूप से कंप्यूटर पर लिखी जाने में थोडी कठिन होती है। प्रायः हमारे कुंजीपटल पर अंग्रेजी अक्षर अंकित होते है और हिन्दी कुंजियों का क्रम शायद ही कोई जानता हो। परन्तु अब अंग्रेजी कुंजीपटल के माध्यम से भी देवनागरी बड़ी ही आसानी से लिखी जा सकता है। यह लेख उपरोक्त कथन का जीवंत उदहारण है।

तो फ़िर क्या वजह है कि हिन्दी का उपयोग आज भी व्यापक रूप से नही हो रहा। हमारे देश मैं इंटरनेट का उपयोग करने वालो कि संख्या दिन प्रतिदिन बढ़ रही है, पर हिन्दी लिखने वालो का प्रतिशत आज भी नगण्य है। एक आम उपयोगकर्ता आज भी हिन्दी मैं लिखना नही जानता। कहने को तो आज हम सूचना प्रौद्योगिकी की महाशक्ति है, पर हम हमारी ख़ुद की भाषाओँ में ही लिखना नही जानते।

हम अपने सामने ऐसे कई उदहारण रख सकते जिन्होंने अपनी भाषाओँ को ससम्मान इंटरनेट तक पहुँचाया। जर्मनी एवं दुसरे यूरोपियन देश, चीन, जापान, थाईलैंड, अरबिक देश आदि आज कामयाबी से व्यापक तौर पर अपनी भाषाओँ का उपयोग कर रहें हैं। पर हम आज भी अंग्रेजी पर पूरी तरह अवलंबित हैं।

कोई दोमत नही कि आज हम जहाँ है उसमें अंग्रजी का महत्वपूर्ण योगदान है। अंग्रेजी की वजह से ही हमने सूचना प्रौद्योगिकी में यह मुकाम हासिल किया है। पर इस वजह से आज हिन्दी का तिरस्कार होने लगा है। यदि आप हिन्दी बोल रहें हो तो लोग आपको नीची निगाहों से देखने लगते है। कम से कम तथाकथित 'कॉस्मो' शहरों का 'मल्टीप्लेक्स कल्चर' तो यही कहता है। बच्चो को बचपन से हिन्दी बोलने पे सज़ा दी जाने लगती है। हिन्दी को प्रायः दूजी श्रेणी कि का दर्जा ही हासिल होता है। या तो अंग्रेजी कि वजह से, या उस प्रदेश कि प्रांतीय भाषा के सामने। कई लोग तो हिन्दी में बात करने वाले को सीधे-सीधे पिछडा करार दे देते हैं। लोग फ्रेंच, जर्मन या कोई विदेशी भाषा बड़े गर्व के साथ सीखते है। पर हिन्दी का ज़िक्र तक करते उन्हें शर्म आती है। यह दर्शाता है कि हम में कितना आत्मसम्मान है।

हो यह गया है कि हम ना तो घर के रहें है न घाट के। ना हमें ढंग से अंग्रेजी आती है, (जी हाँ, आज भी हमारी अंग्रेजी का आंग्ल-देशों में मज़ाक ही उडाया जाता है) ना ही हम ढंग से हिन्दी बोलने के काबिल रहे हैं, और ना ही अपनी प्रांतीय भाषा। और इस भाषा कि खिचडी को नये पीढ़ी की 'फैशन' करार दिया जाता है। मैं किसी हिन्दी के प्राध्यापक की तरह कोई भाषण नही देना चाहता, और मैं ख़ुद भी इसी 'फैशन' का जाने-अनजाने गुलाम बन चुका हूँ।

आज भी हमारे देश की ९० फीसदी से ज्यादा जनता (जो की पढ़ लिख सकती है ), प्रमुख रूप से हिन्दी या प्रांतीय भाषा का प्रयोग अपने रोज़मर्रा के कार्यो के लिए करती है। यदि उन तक हमें इन्टरनेट को पहुचना है तो अपनी भाषाओं को इन्टरनेट तक पहुचाना ही पड़ेगा। हम लोग भाग्यशाली है जो अंग्रेजी पढ़-लिख सकते है। परन्तु जो नही है उन तक इस चमत्कारी सूचना प्रौद्योगिकी को पहुचाने के लिए देशीय भाषाओं का इन्टरनेट तक पहुचना अत्यन्त आवश्यक है।

यद्यपि आज के दौर में अंग्रेजी अत्यधिक महत्वपूर्ण है परन्तु अपनी मातृभाषा का सम्मान करना भी हमारी ही ज़िम्मेदारी है। भले ही आप ख़ुद हिन्दी का प्रयोग ना करे, पर इस लेख को पढ़ कर यदि आप हिन्दी के लिए भी अपने ह्रदय में थोड़ा सा स्थान बना पायें, और हिन्दी को हीन भावना से देखे, तो भी मेरा यह लेख सफल है।

9 comments:

Anonymous said...

हिंदी भाषा का प्रयोग न करना मतलब उसका सम्मन नहीं करना नहीं होता है
मैं हिंदी भाषा का प्रयोग अपने दैनिक कार्यो मैं नहीं कर पाता हूँ इसका पर मैं हिंदी का सम्मान करता हूँ

जीवन मैं तरक्की के लिए अंग्रेजी भाषा हमारी एक जरुरत बन गयी है.
जो रोजगार के इतने अवसर हमें प्राप्त हुए है वोह सिर्फ हमारी अंग्रेजी भाषा पर पकड़ के कारण ही है.

Unknown said...

मैं आपसे पूरी तरह सहमत हूँ. सही कहूँ तो यह लेख जिनके लिए है वे तो इसे कभी शायद पढ़ भी नहीं पायेंगे.

Malyaj said...

hi guys! i dont knw d procedure how to put ma words in hindi fonts here dats y m writting in english.. so dont mind..
i agree to kunal's article very much... even iv been in dis argument wid loads of ma colleagues.. tryin to xplain them d importance of mother tongue HINDI... but it cudnt bring neting more than a moment of discomfort n irritation in them coz of finding themslvs moraly n ethicaly correct.. sometime atmost all i cud find a pragmatic (or diplomatic) statement just like this anonymous person has presented here..
u knw... how did kerala brought its literacy rate to 100%? kerala govt. knowing that its very hard to make people literate in two or three languages.. they just started teaching n making people literat in malayalam...jst becoz it wud be a lot easier to make things uunderstandable to a person of village in his/her own regional (or hindi) language dan in some other foriegn language..
atleast they hav a highest literacy rate in india.. and highest women to man ratio in country... on d social scale its d most developed state of country.. one of the reason behind it is its highiest literacy rate..
i agree that english has becom a necessary language in 2dez corporate world which has a direct influence on our carrier.. but the point that kunal is tryin to lighlight is not merely increased use of english but the BIASED n
PREJUDICED view if people 2wards english as a soffisticated and civilised language and hindi as a LOW CLASS language. the hindi literature is getting obsolete from the market. sooner or later it wont be a wonder that coming generation would hav to make efforts to remmeber the names like premchand n shrilal shukl.
looking nationwide, it wil be lot easier to make people literate in hindi than in english. atleast it wil be easier for poor backward(economicaly) population of our country.
again kunal is right dat people 4 whom dis article was written wont even finish the article. rather they wud laugh on words that they wont find easy to read and pronounce on first glance. atleast thats wat happen wid me wen i use some normal litrary words of hindi during day to day conversations.. u knw wat? i had to intentionaly lower ma hindi vocab so as to make them easy to undnerstand ma words. gosh.. dat has surely spoild ma hindi too..
n one more ting yaar.. i dont tink it requires more than few couple of months to improve our english (unless we dont want our english to be as good as that of a novelist) so s to make our servival in corporate world easier n progressiv.. :-D
it was a worth article to right kunal.. liked it.. n personly i belive dat ders no need to delete it from ur blog n neither u hv to send it to selected people.. send it to s many s possible n make dem realise dat on the name of ENGLISH people are creating new abyss of diffrence between people of der own country...
for god sake! atleast dont make language a tool n reason of differences between humans.. v already enough goddamn points to deal wid wich hv been responsibl 5 creating differences n heirarchy in society...
(PS: personaly i dont consider ne language better or lower. for me language is simply one more medium of convaying ma thoughts to people.al im against is the prejudiced n biased attitude of present generation 4 languages n consequently 4 people.)

Malyaj said...

PS: dat was "moraly n ethicaly incorrect..." pls read it correctly..

Unknown said...

@malyaj - thanks a million for 1) such an elaborate reply, 2) for understand the motive behind the blog to the fullest, and 3) for being unbiased and empathetic towards local languages.

Your reply is very pertinent. People like us will have to do something, apart from discussing. I strongly recommend you to put forward your views via blog or something.

and never mind the language you post your reply in, as long as i can understand it :)

thanks again!

Anonymous said...

abe ! itni bhaari-bharkam Hindi use karne se to aur bhi hindi use karna mushkil ho jayega....

Lipi is not the issue (see above...)
& dont't make it a "sammaan" issue dude. Its just that Comps were invented by English speaking ppl...

Looking at the market in India, they themselves are coming out with versions for regional languages....

-ak

Unknown said...

@ak - thanks for you comment :)

My intent behind this blog was not flaunting hindi, nor did I want to provoke the 'samman' sentiments, and in fact I am not even suggesting to use hindi for our regular internet use.

But how the whole things have turned out is that those who can use computers already know english. And those who can understand only hindi don't even have access to computers (usually). But as and when that crowd will start using internet, they will find it hard to comprehend the whole stuff. (for example, exam results are usually declared on websites, imagine someone in the remote village having to access internet)

just imagine when net savvy people like us find it hard to use hindi on internet, how difficult will it be for those (given they dont even understand 'help' documented in english).

I just wanted to point out that attitude of few people in our country is not so correct towards local languages. And people like us will have make sure that hindi reaches to internet for the sake of mass.

Unknown said...

and computer was not invented by arabic, chinese or german-speaking either .. but these people have successfully brought their languages to the interenet.

Bharat said...

मेरे परम मित्र कुनाल । तुम्हारी बातो से मैं सहमत हूँ। आज के युग में जहाँ जीवन में सफल होना ही हमारा उद्देश्य बन चुका है, हम वह सारे उपाय करते हैं जिनसे की हमारा समाजः में कोई स्थान बन पाये। समाज लोगो से बनता है। और जैसे जैसे लोग बदलते हैं वैसे वैसे समाजः भी बदलता है । और इतने वर्षो में हम सब देख चुके है की समाज में क्या क्या बदलाव आए हैं। भाषा में बदलाव प्रासंगिक तो है किंतु अगर हम इसे बड़े परिपेख्य में देखे तो पायेंगे की यह समाज के बदलाव का एक बहुत ही छोटा रूप है । किंतु यह भी सत्य है की यह बदलाव कितना भी गौण क्यूँ न हो चिंतनीय है। मैं इस बात से भी सहमत हूँ की हिन्दी या दूसरी प्रांतीय भाषाओ को आज की सूचना प्रोद्योगिकी से जोड़ने के लिए लोगो को कदम बढ़ाने पड़ेंगे।